Vaishnava Dakshina Marg Sadhanas by Ek Sattva

Shri Harsu Brahm Ashtakam

॥ श्री हरसू ब्रह्माष्टकम् ॥

संसार – भार वहने विकलोन्द्रियाणाम्।
सन्तप्यमान मनसा शरणागतानाम्॥
सद्यो विनाशयति रोग कुलं समूलम्।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥१॥

राजेश वन्दित महाभवने विशीर्ण।
देह शिलामयमिमं कृपया दधान॥
नित्यं प्रयच्छति सुखं सनुपोशितेभ्यः।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥२॥

सपीडिताहि भव रोग पिशाच भूतेः।
कुत्रापिनेव शरणं भवने लभन्ते॥
संप्राप्नुवन्ति शमनं तवपाद मूले।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥३॥

दुर्धर्ष – तेज – वपुषं तव धामनि दृष्ट्वा।
रूपं शिवं सदय भाव – विवेक युक्तम्॥
मुच्यन्ति भूतनिवहाः शरणं प्रपन्नाः।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥४॥

लक्ष्मी – विलास – रमणोऽपिन स्वस्य चित्ताः।
पुत्रेच्छयाहितव पाद तलां प्रपन्नाः॥
लब्ध्वा मनोरथ सुखं सुखमालभन्ते।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥५॥

कुष्ठार्तिसभव दुःखं भवतः समक्षे।
संत्यज्य याति बहवः स्वसुखपयुक्ताः॥
विस्तारयन्ति सुयशं जगतीतलेऽस्मिन्।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥६॥

भताश्च दूषितजनाः तव प्रांगणेऽस्मिन्।
गृह्णन्ति पावन रजो हवनस्य नियम्॥
निर्गच्छन्ति स्वस्थमनसः स्वगृहं प्रसन्नाः।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥७॥

यज्ञा स्वरूपमखिलं तवधाम नित्यम्।
धूमायितं हवनकुण्डजवधिधूमैः॥
आसाद्य यत् भवति कोऽपि विधूतपापः।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥८॥

In Hindi Meaning

॥ श्री हरसू ब्रह्माष्टकम् ॥

श्लोक एवं हिंदी अर्थ


१.
संसार – भार वहने विकलोन्द्रियाणाम्।
सन्तप्यमान मनसा शरणागतानाम्॥
सद्यो विनाशयति रोग कुलं समूलम्।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥

अर्थ:
जो संसार के भार से पीड़ित, इंद्रियों से दुर्बल, एवं मानसिक रूप से व्यथित लोगों को शरण देते हैं और उनके समस्त रोगों को जड़ से नष्ट कर देते हैं, ऐसे श्री ब्रह्मदेव हरसू को मैं नित्य नमन करता हूँ।


२.
राजेश वन्दित महाभवने विशीर्ण।
देह शिलामयमिमं कृपया दधान॥
नित्यं प्रयच्छति सुखं सनुपोशितेभ्यः।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥

अर्थ:
जिनके महान भवन में राजाओं तक द्वारा वंदना होती है, जो कृपा करके दुर्बल एवं रोगग्रस्त शरीर को बल प्रदान करते हैं और भक्तों को निरंतर सुख प्रदान करते हैं, ऐसे श्री ब्रह्मदेव हरसू को मैं नमन करता हूँ।


३.
सपीडिताहि भव रोग पिशाच भूतेः।
कुत्रापिनेव शरणं भवने लभन्ते॥
संप्राप्नुवन्ति शमनं तवपाद मूले।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥

अर्थ:
जो जन्म-मृत्यु के दुख, रोग, भूत-प्रेत बाधाओं से पीड़ित लोगों को शरण देते हैं और उनके समस्त कष्टों को अपने चरणों की छाया में समाप्त कर देते हैं, ऐसे श्री ब्रह्मदेव हरसू को मैं नमन करता हूँ।


४.
दुर्धर्ष – तेज – वपुषं तव धामनि दृष्ट्वा।
रूपं शिवं सदय भाव – विवेक युक्तम्॥
मुच्यन्ति भूतनिवहाः शरणं प्रपन्नाः।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥

अर्थ:
जिनका तेजस्वी रूप एवं धाम देखने मात्र से ही भूत-प्रेत जैसी बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं, जिनकी कृपा और विवेकयुक्त दृष्टि से सभी भयमुक्त हो जाते हैं, ऐसे श्री ब्रह्मदेव हरसू को मैं नमन करता हूँ।


५.
लक्ष्मी – विलास – रमणोऽपिन स्वस्य चित्ताः।
पुत्रेच्छयाहितव पाद तलां प्रपन्नाः॥
लब्ध्वा मनोरथ सुखं सुखमालभन्ते।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥

अर्थ:
जो भक्त धन-वैभव और संतान प्राप्ति की इच्छा से उनके चरणों की शरण लेते हैं और मनोवांछित सुख प्राप्त करते हैं, ऐसे श्री ब्रह्मदेव हरसू को मैं नमन करता हूँ।


६.
कुष्ठार्तिसभव दुःखं भवतः समक्षे।
संत्यज्य याति बहवः स्वसुखपयुक्ताः॥
विस्तारयन्ति सुयशं जगतीतलेऽस्मिन्।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥

अर्थ:
जिनके समक्ष आकर अनेक रोगी अपने रोग और दुखों को त्याग कर स्वस्थ और सुखी जीवन प्राप्त करते हैं, और उनका यश संपूर्ण पृथ्वी पर फैलाते हैं, ऐसे श्री ब्रह्मदेव हरसू को मैं नमन करता हूँ।


७.
भताश्च दूषितजनाः तव प्रांगणेऽस्मिन्।
गृह्णन्ति पावन रजो हवनस्य नियम्॥
निर्गच्छन्ति स्वस्थमनसः स्वगृहं प्रसन्नाः।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥

अर्थ:
जो पापग्रस्त और रोगी लोग उनके मंदिर या आश्रम में आकर वहां की पवित्र धूलि और हवन से शुद्ध होते हैं और स्वस्थ, प्रसन्न मन से अपने घर लौटते हैं, ऐसे श्री ब्रह्मदेव हरसू को मैं नमन करता हूँ।


८.
यज्ञा स्वरूपमखिलं तवधाम नित्यम्।
धूमायितं हवनकुण्डजवधिधूमैः॥
आसाद्य यत् भवति कोऽपि विधूतपापः।
श्री ब्रह्मदेव हरसू सततं नमामः॥

अर्थ:
जिनका धाम (स्थान) यज्ञस्वरूप है, जहाँ निरंतर हवन-कुंड के पवित्र धुएं से वातावरण शुद्ध रहता है, और वहाँ जाने से सभी के पाप धुल जाते हैं, ऐसे श्री ब्रह्मदेव हरसू को मैं नमन करता हूँ।

हिन्दी अष्टक

शरण जो बाबा के मन से आवे ।
दुःख-शोक सब दूर भगावे ॥
रोग-व्याधि मिटें सब भारी ।
कृपा बाबा की अपार उदारी ॥

जो भी हरसू ध्यान लगाए ।
सुख-संपदा सहज ही पाए ॥
ऐसे ब्रह्म हरसू नित गाऊँ ।
चरण कमल मैं शीश नवाऊँ ॥


(2)
राजा, रंक, सभी सुख पाते ।
बाबा गुण गाकर हरषाते ॥
जो बाबा नाम सुमिरन कर ले ।
संतोष अमिट हृदय में भर ले ॥

हरसू धाम अनूप अनोखा ।
हर ले मन से पाप-विलोका ॥
ऐसे ब्रह्म हरसू नित गाऊँ ।
चरण कमल मैं शीश नवाऊँ ॥


(3)
भूत-प्रेत बाधा जो पावे ।
शरण ब्रह्म की संकट मिट जावे ॥
जो भी हरसू नाम जपेगा ।
सब संकट से मुक्त रहेगा ॥

जग में तेरा तेज अपारा ।
रखते सदा कृपा का धारा ॥
ऐसे ब्रह्म हरसू नित गाऊँ ।
चरण कमल मैं  शीश नवाऊँ ॥


(4)
दर्शन भर से भागे काला ।
सुखमय होवे जीवन सारा  ॥
पिंड छवि शिव-समान सुहाए ।
जो निहारे, पुण्य कमाए ॥

धन्य-धन्य तेरा दरबारा ।
सदा करें हम गुणगान तुम्हारा ॥
ऐसे ब्रह्म हरसू नित गाऊँ ।
चरण कमल मैं शीश नवाऊँ ॥


(5)
जो भी बाबा का नाम पुकारे ।
मनवांछित फल वह पावे ॥
धन-संतान, सुख की आशा ।
पूरी हो सब तुम्हरी भाषा ॥

तुम्हरी कृपा अपरंपारा ।
सब पर करें सदा उपकारा ॥
ऐसे ब्रह्म हरसू नित गाऊँ ।
चरण कमल मैं शीश नवाऊँ ॥


(6)
कुष्ठ-रोग जो होय सताए ।
तुम्हरा  भजन सहज सुखदाए ॥
पीड़ा मिटे, तन निर्मल होवे ।
सकल कष्ट मन से खोवे ॥

तुम्हरी महिमा अपार निराली ।
शरण जो आए, हो भव-ख्याली ॥
ऐसे ब्रह्म हरसू नित गाऊँ ।
चरण कमल मैं शीश नवाऊँ ॥


(7)
तुम्हरी शरण शांति सुखदायी ।
मन की चिंता मिटे हमारी  ॥
जो भी तुम्हरा धाम निहारे ।
निर्मल चित्त बने हर बारे ॥

तुम्हरी महिमा गाऊँ प्यारी ।
सकल जगत की महा सहारी ॥
ऐसे ब्रह्म हरसू नित गाऊँ ।
चरण कमल मैं शीश नवाऊँ ॥


(8)
यज्ञमय चैनपुर पावन धामा ।
धूप-हवन से महके गामा ॥
जो भी चरण-चिन्ह को पावे ।
पाप-पंक से मुक्त हो जावे ॥

धन्य हुआ यह जीवन प्यारा ।
जो पाया तुम्हरा दरबारा ॥
ऐसे ब्रह्म हरसू नित गाऊँ ।
चरण कमल मैं शीश नवाऊँ ॥